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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (11) दिल्ली अभी दूर है ( मुहावरों की दुनिया )

शीर्षक = दिल्ली अभी दूर है




वो दिन तो अच्छे से गुज़र गया, सब ने शाम की चाय का आंनद लिया, खूब बाते की और देखते देखते कब रात हो गयी पता ही नही चला


मानव भी आज अपने कमरे में बैठा आज शाम को सुनाई गयी अपनी माँ के संस्मरण को किताब में लिख रहा था, अब बस थोड़े और मुहावरें बचे थे जिनपर कहानियाँ लिखना थी, जिनमे से अगला मुहावरा था " दिल्ली अभी दूर है "

मानव ने उसे कल के लिए छोड़ दिया, और अपने काम में लग गया


इसी तरह वो रात ढल गयी और सवेरा हो गया, और हर दिन की भांति वही सब हुआ जो इतने दिनों से हो रहा था, मानव और राधिका नहा धोकर कमरे से बाहर आते है, दीन दयाल जी खेत से वापस आ जाते है और मानव उनकी गोदी में बैठ जाता है


थोड़ी देर बाद दादा पोते गांव की सेर को निकल जाते है, और आज वो उस गांव के मशहूर ढाबे पर जाते है, जहाँ पर दुसरे गांव से काम करने आये मजदूर खाना खाने आते है और मुख्य चौराहे पर बने होने के कारण राहगीर भी आते थे, खाना खाने


उस ढाबे पर लगी भीड़ को देख अंदाजा लगाया जा सकता था, की वो ढाबा अच्छा चलने लगा है, उस ढाबे के मालिक ने ज़ब दीना नाथ जी को देखा तो उनकी तरफ आकर उन्हें प्रणाम किया और हाल चाल पूछा


दीना नाथ जी ने अपना हाल चाल बता कर, उनका हाल चाल पूछा जिस पर उन्होंने कहा " ईश्वर की किरपा है, जो उसने एक बार फिर इस ढाबे पर ग्राहकों को भेजना शुरू कर दिया वरना तो मुझे लगने लगा था, की पुरखो द्वारा अमानत के तोर पर दिया गया ये ढाबा अब खत्म हो जाएगा, लेकिन भगवान की दया से समय रहते इसे बचा लिया गया, नही तो ना जाने क्या होता "


"कोई नही, थोड़ा बहुत तो समय लगता है, किसी भी काम को सीखने में, तुम्हारे बेटे को देख कर लग रहा है, अब वो काफ़ी कुछ सीख गया है, उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है, उसे भी अब आभास हो गया है कि दिल्ली अभी दूर है, उसे बहुत कुछ सीखना बाकी है, इस काम में पकड़ बनाने के लिए "दीना नाथ जी ने कहा


"ठीक कहा, दीनू भैया,, आओ कुछ खाओ आपका ही ढाबा है " ढाबे के मालिक ने कहा


"नही नही,, इसकी ज़रूरत नही,, अभी ही नाश्ता किया है,, बस अपने पोते को गांव घुमा रहा हूँ, फिर कभी फुरसत से आऊंगा " दीना नाथ जी ने कहा और मानव को लेकर आगे बढ़ गए


मानव ने अपने दादा से पूछा " दादा जी " दिल्ली अभी दूर है " इसका क्या मतलब होता है, आपने उनसे इस तरह क्यूँ कहा? ये मुहावरा तो मेरी कॉपी में भी था, और मुझे आपसे पूछना भी था "


अच्छा तो आपको इस मुहावरें का अर्थ जानना है, चलो में बताता हूँ, चलते चलते बताता हूँ, इसी बहाने टहल भी हो जाएगी और तुम्हारा एक मुहावरा भी पूरा हो जाएगा


बेटा इस मुहावरें को हम इस तरह समझने का प्रयास करेंगे, बेटा जिस ढाबे पर हम लोग अभी गए थे और जिस आदमी से हमने बात कि थी, वो ढाबा उनके परदादा के ज़माने का था, उन लोगो का वही एक मात्र जरिया है आमदनी का


वो आदमी जो हमें मिले थे उनका नाम तुला राम है और उनका एक ही बेटा है, जिसे उन्होंने पहले तो गांव के स्कूल में ही पढ़ाया उसके बाद शहर भेज दिया पढ़ने के लिए, ज़ब वो तालीम मुकम्मल करके गांव आया तब, उसने अपने पिता के ढाबे पर बैठना शुरू कर दिया, लेकिन उसका व्यवहार अपने पिता से अलग था, उसने देखा कि उसके पिता जी बहुत लोगो को उधार तो बहुत लोगो को ऐसे ही मुफ्त में खाना खिला देते थे, और उसी के साथ उसे लगता की वहाँ काम करने वाले भी उसके पिता को बेवक़ूफ़ बना रहे है


इसलिए उसने सारा काम खुद सँभालने की सोची और अपने पिता को घर बैठने को कहा, उसके पिता ने उसे समझाया और कहा " बेटा दिल्ली अभी दूर है, तुम्हे खुद अभी बहुत कुछ सीखना है, इस कारोबार को आगे लेकर जाने के लिए, अभी तुम खुद अनाड़ी हो, भले ही तुमने स्कूल कॉलेज से हिसाब किताब का ज्ञान हासिल कर लिया हो, और लेकिन प्रैक्टिकल करना अभी बाकी है, जो की थ्योरी से अलग होता है, और जिसे सीखना पड़ता है ना की रट्टा मारकर काम चलाना पड़ता है, "


उसके बेटे ने उसकी एक ना सुनी और उसे घर बैठा कर स्वयं सारा काम सँभालने लगा, लेकिन उसका व्यवहार अच्छा ना होने के कारण पहले तो ग्राहकों ने आना बंद कर दिया और फिर वहाँ काम करने वाले लोग भी उससे तंग आकर वहाँ से चले गए


ये बात ज़ब तुला राम तक पहुंची और जाकर अपने ढाबे को देखा तो माथा पकड़ लिया जहाँ कभी ग्राहकों की लाइन लगी होती थी वहाँ अब इक्का दुक्का ही लोग बैठे थे


तुला राम के बेटे को भी एहसास हो गया था की उसके पिता सही थी, उसके लिए अभी इस कारोबार को चलाने के लिए बहुत कुछ सीखना है, चार किताबें पढ़ लेने के बाद अभी उसे प्रेक्टिकल की भी ज़रूरत है, अभी दिल्ली दूर है, अगर उसे इस ढाबे को अच्छे से चलाना है तो अपने पिता से बहुत कुछ सीखना बाकी है


अब समझ गए मैंने ऐसा क्यूँ कहा था तुला राम से " दीन दयाल जी ने कहा


"जी दादा मुझे समझ आ गया, की तुला राम अंकल के बेटे को अभी बहुत कुछ ऐसा सीखना था, जिससे की वो उस ढाबे को अच्छे से चला सके, अन्यथा वो उस ढाबे को बर्बाद कर देंगे" मानव ने कहा


दीन दयाल जी के चहरे पर मुस्कान थी और वो दोनों आगे चल दिए



मुहावरों की दुनिया हेतु 

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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Mar-2023 07:35 AM

बहुत खूब

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Sachin dev

30-Jan-2023 05:04 PM

Well done

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Zakirhusain Abbas Chougule

27-Jan-2023 10:28 PM

Nice

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